बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने छेड़छाड़ के एक आरोपी को बरी कर दिया है। उस पर साल 2015 में एक किशोर लड़की से छेड़छाड़ का आरोप था। अदालत ने कहा कि आई लव यू कहना सिर्फ अपनी भावनाओं को जाहिर करना है। यह यौन इरादे जैसा नहीं है। शिकायत के मुताबिक शख्स ने 17 साल की लड़की को रास्ते में रोककर उसका हाथ पकड़ने के बाद आई लव यू कहा था।
न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के की पीठ ने सोमवार सुनवाई के दौरान पारित आदेश में कहा कि किसी भी यौन कृत्य में अनुचित छूना, जबरन कपड़े उतारना, अभद्र इशारे या महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से की गई टिप्पणी आती है। अपनी टिप्पणी में अदालत ने कहा कि आई लव यू जैसे शब्द अपने आप में यौन इरादा नहीं माना जाएगा, जैसा कि विधायिका ने माना है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा अगर कोई किसी अन्य व्यक्ति से आई लव यू कहता है तो वह अपनी भावनाओं को जाहिर कर रहा है। यह अपने आप में कोई यौन इरादा नहीं माना जाएगा।
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सत्र न्यायालय से हुई थी 3 साल की सजा
2017 में नागपुर की सत्र न्यायालय ने शख्स को भारतीय दंड संहिता और पोक्सो एक्ट की धाराओं के तहत दोषी ठहराया था। उसे तीन साल की सजा हुई थी। बाद में शख्स ने सत्र न्यायालय के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। अब नागपुर खंड पीठ ने उसे बरी कर दिया। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी, जो यह इंगित करें कि उसका असल इरादा पीड़िता के साथ यौन संबंध का था।
'आई लव यू कहना छेड़छाड़ के दायरे में नहीं'
हाई कोर्ट ने कहा, 'आई लव यू कहने के पीछे असल इरादा सेक्स का था, इस बात के और भी सबूत होने चाहिए। अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि जब लड़की स्कूल से घर लौट रही थी तब उस व्यक्ति ने हाथ पकड़ा और नाम पूछने के बाद आई लव यू कहा। लड़की किसी तरह वहां से निकली और घर पहुंचकर पिता को घटना की जानकारी दी। इसके बाद एफआईआर दर्ज की गई।'
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कोर्ट ने आगे कहा कि यह मामला छेड़छाड़ या यौन उत्पीड़न के दायरे में नहीं आता। किसी भी यौन कृत्य में अनुचित तरीके से छूना, जबरन कपड़े उतारना, अश्लील इशारे या महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से की गई टिप्पणी आती है। इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं है कि आरोपी ने यौन इरादे से आई लव यू बोला था।