जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) ने मंगलवार को फैसला दिया कि पोर्श कार दुर्घटना मामले में शामिल किशोर को नाबालिग माना जाएगा। बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि कोर्ट ने पुणे पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें किशोर को वयस्क की तरह ट्रायल करने की मांग थी। पिछले साल 19 मई की सुबह पुणे के कल्याणी नगर में 17 साल के किशोर ने कथित तौर पर नशे की हालत में पोर्श कार चलाते हुए दो आईटी प्रोफेशनल्स अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा को टक्कर मार दी, जो एक बाइक पर सवार थे। इस हादसे में दोनों की मौत हो गई।
पुणे पुलिस ने पिछले साल यह कहते हुए आरोपी पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का अनुरोध किया था कि उसने एक ‘जघन्य' कृत्य किया है। उस पर न केवल दो लोगों की हत्या बल्कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने के भी आरोप हैं। गिरफ्तारी के बाद, जेजेबी ने किशोर को जमानत दे दी, लेकिन उसे सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने की शर्त रखी। इससे लोगों में गुस्सा भड़क गया, जिसके बाद पुलिस ने मामले की फिर से जांच की और किशोर को ऑब्जर्वेशन होम भेजा गया। बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश दिया।
मां भी हुई थी गिरफ्तार
किशोर की मां को पिछले साल जून में गिरफ्तार किया गया था, क्योंकि उन पर अपने बेटे को बचाने के लिए खून के सैंपल बदलने और हादसे के समय शराब पीने के तथ्य को छिपाने के लिए 3 लाख रुपये देने का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अप्रैल में अंतरिम जमानत दी।
बंबई उच्च न्यायालय ने 25 जून 2024 को आरोपी को तुरंत रिहा करने का निर्देश देते हुए कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उसे सुधार गृह भेजने के आदेश अवैध थे और किशोरों से संबंधित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।
वकील ने क्या कहा?
मामले की सुनवाई में स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर शिशिर हिराय ने कहा कि 17 साल का किशोर, जिसे 'चाइल्ड इन कॉन्फ्लिक्ट विद लॉ' (सीसीएल) कहा गया, नशे में गाड़ी चला रहा था। उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) और धारा 467 (जालसाजी) के तहत मामला दर्ज है, क्योंकि उसने खून के सैंपल बदलने की कोशिश की थी।
हिराय ने कहा, ‘दोनों अपराधों की सजा 10 साल से ज्यादा है और इन्हें जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत गंभीर अपराध माना जाता है। किशोर को अपने कृत्य के परिणाम पता थे, इसलिए उसे वयस्क की तरह ट्रायल करना चाहिए।’
वकील प्रशांत पाटिल ने इसका विरोध किया और कहा कि जेजेबी कानून का मकसद सुधार और पुनर्वास है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ये आरोप जरूरी नहीं कि एक्ट के तहत 'गंभीर' माने जाएं। उन्होंने कहा, बोर्ड को किशोर के सुधार की संभावना पर विचार करना चाहिए। उसे वयस्क की तरह ट्रायल करना जुवेनाइल जस्टिस के मकसद के खिलाफ होगा।