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प्रज्ञा ठाकुर समेत 7 को बरी करने के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचा पीड़ित पक्ष

मालेगांव बम ब्लास्ट में आए निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पीड़ित पक्ष ने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी है। हाई कोर्ट से विशेष अदालत के फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

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प्रज्ञा ठाकुर। Photo Credit- PTI

मालेगांव बम विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजन ने मामले के सात आरोपियों को बरी करने के विशेष अदालत के फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी है। बरी किए गए इन आरोपियों में बीजेपी की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल हैं। यह अपील निसार अहमद सैयद बिलाल और पांच अन्य लोगों ने वकील मतीन शेख के माध्यम से दायर की है। अपील में हाई कोर्ट से विशेष अदालत के फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

 

अपील में दावा किया गया कि दोषपूर्ण जांच या जांच में कुछ खामियां आरोपियों को बरी करने का आधार नहीं हो सकतीं। इसमें यह भी तर्क दिया गया है कि साजिश गुप्त रूप से रची जाती है, इसलिए इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विशेष एनआईए कोर्ट की ओर से 31 जुलाई को सुनाया गया सात आरोपियों को बरी करने संबंधी आदेश गलत है, इसलिए रद्द करने योग्य है।

 

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नासिक के मालेगांव में हुए थे ब्लास्ट

हाई कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, यह अपील 15 सितंबर को जस्टिस ए.एस. गडकरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आने की संभावना है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर नासिक जिले के मालेगांव कस्बे में 29 सितम्बर 2008 को एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट हुआ था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 अन्य घायल हो गए थे।

 

याचिका में कहा गया है कि निचली अदालत के जज को आपराधिक मुकदमे में ‘डाकिया या मूकदर्शक’ की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। जब अभियोजन पक्ष तथ्य उजागर करने में विफल रहता है, तो निचली अदालत सवाल पूछ सकती है और/या गवाहों को बुला सकती है। याचिका में कहा गया है, 'दुर्भाग्य से निचली अदालत ने केवल एक डाकघर की भूमिका निभाई है और आरोपियों को लाभ पहुंचाने के लिए अपर्याप्त अभियोजन की अनुमति दी है।'

 

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एनआईए पर धीमी गति से कार्रवाई करने का आरोप

इसमें यह भी बताया गया है कि पिछली विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने आरोप लगाया था कि एनआईए ने आरोपियों के खिलाफ मामले में धीमी गति से कार्रवाई करने का दबाव बनाया था, जिसके बाद एक नए अभियोजक की नियुक्ति की गई थी। याचिका में एनआईए द्वारा मामले की जांच और मुकदमे की सुनवाई के तरीके पर भी चिंता जताई गई और आरोपियों को दोषी ठहराने की मांग की गई। इसमें दावा किया गया कि एनआईए ने मामला अपने हाथ में लेने के बाद आरोपियों के खिलाफ आरोपों को कमजोर कर दिया।

एनआईए कोर्ट ने क्या कहा था?

एनआईए कोर्ट की अध्यक्षता कर रहे स्पेशल जज ए.के. लाहोटी ने कहा था कि आरोपियों के खिलाफ कोई भी 'विश्वसनीय और ठोस सबूत' नहीं है, जो मामले को संदेह से परे साबित कर सके। अभियोजन पक्ष का दावा था कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा स्थानीय मुस्लिम समुदाय को डराने के इरादे से किया गया था। एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में अभियोजन पक्ष के मामले और की गई जांच में कई खामियों को उजागर किया था और कहा था कि आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।

 

प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित के अलावा, आरोपियों में मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे।

 

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