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शनि जयंती: कैसे सूर्य पुत्र बने कर्मों के देवता? पौराणिक कथा से जानें

हिंदू धर्म में शनि देव की उपासना को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं कब मनाई जाएगी शनि जयंती।

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शनि देव(Photo Credit: AI)

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हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनि देव की उपासना करने से व्यक्ति की सभी बाधाएं और शनि से जुड़े ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। शनि देव की विशेष उपासना के लिए सप्ताह में शनिवार का दिन और साल में शनि जयंती पर्व को सबसे उत्तम माना जाता है।

 

शनि जयंती वह दिन होता है जब भगवान शनि का जन्म हुआ था। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में शनि देव को नवग्रहों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शनि जयंती का दिन शनि भक्तों के लिए विशेष पुण्यदायक माना जाता है।

शनि देव कौन हैं?

धर्म-ग्रंथों के अनुसार, शनि देव सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। इनका रंग गहरा काला है और इनका वाहन कौवा को बताया गया है। शनि देव को धीमे-धीमे चलने वाला ग्रह कहा जाता है और वे व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब शनि की साढ़े साती या ढैया किसी व्यक्ति की कुंडली में आती है, तो जीवन में कठिन समय शुरू हो सकता है। परंतु यह समय सुधार और आत्ममंथन का भी अवसर होता है।

 

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शनि जयंती 2025 कब है?

वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल शनि जयंती ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 26 मई दोपहर 12:11 बजे शुरू होगी और इस तिथि का समापन 27 मई सुबह 08:11 बजे हो जाएगा। उदया तिथि शनि जयंती पर्व 27 मई 2025, मंगलवार के मनाया जाएगा।

शनि जयंती की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव की पत्नी संज्ञा अपने पति की तेज रौशनी को सहन नहीं कर पाईं और उन्होंने अपनी छाया को अपने स्थान पर छोड़कर तप करने चली गईं। छाया ने सूर्य देव की सेवा की और उसी समय शनि देव का जन्म हुआ। शनि देव का रंग बहुत गहरा था, जिसे देखकर सूर्य देव को शक हुआ और उन्होंने इसे अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया।

 

इस अपमान से शनि देव ने क्रोधित होकर अपनी दृष्टि सूर्य पर डाल दी, जिससे सूर्य का तेज मंद पड़ गया। बाद में छाया ने सब सच बताया और तब जाकर सूर्य ने अपने पुत्र को स्वीकार किया। हालांकि, ज्योतिष शस्त्र में बताया जाता है कि आज भी शनि देव और सूर्य देव में टकराव की स्थिति बनी रहती है। वहीं भगवान शिव ने शनि को ग्रहों में एक विशेष स्थान मिला और उन्हें कर्मों का न्यायाधीश माना गया।

 

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शनि जयंती का धार्मिक महत्व

शनि जयंती पर भक्त शनि मंदिरों में जाकर विशेष पूजा करते हैं, जैसे कि तेल अर्पण, दीपदान और शनि स्तोत्र का पाठ। इस दिन शनि यंत्र की स्थापना, शनि गायत्री मंत्र का जाप और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष लाभकारी होता है जिनकी कुंडली में शनि की दशा या साढ़े साती चल रही होती है।

 

शनि जयंती के दिन काले तिल, काले वस्त्र, लोहे का सामान, तेल और उड़द दाल का दान करना शुभ माना जाता है। यह न केवल शनि दोष को कम करता है, बल्कि जीवन में आने वाले संकट भी टालता है।


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