CPI (M), ML और CPI एक-दूसरे से कितनी अलग? कहानी लेफ्ट के बिखराव की
राजनीति
• PATNA 07 Jul 2025, (अपडेटेड 07 Jul 2025, 11:24 AM IST)
बिहार में वामपंथ की तीन पार्टियां चुनावी राजनीति में सक्रिय हैं। CPI, CPI (M) और CPI (ML) (L)। तीनों राजनीतिक दल, विचारधारा के स्तर पर अलग-अलग हैं। अब ये एक गठबंधन का हिस्सा हैं लेकिन इनकी मूल विचारधार में अंतर है। वह अंतर क्या है, आइए समझते हैं।

CPI के महासिचव डी राजा, CPI (M) के महासचिव एमए बेबी और CPI (ML) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य। (Photo Credit: PTI)
केरल को छोड़कर देश के किसी भी राज्य में वामपंथी दल सत्ता में नहीं हैं। उत्तर भारत में वामपंथ के पांव साल-दर-साल सिमटते चले गए। 1950 के 1980 के दशक तक फिल्मों से लेकर राजनीति तक में वामपंथ का मजबूत असर दिखा लेकिन बदलती दुनिया में यह विचारधारा, चुनावी राजनीति में बहुत प्रभावशाली नहीं रह पाई। यह वह दौर था, जब साम्यवादी और समाजवादी विचारधाएं भारत के बुद्धिजीवी वर्ग को रास आ रही थीं। मार्क्सवाद और लेनिनवाद के सिद्धांत को बुद्धिजीवियों, मजदूर आंदोलनों और किसान संगठनों के बीच पंसद किया जाता था।
भारत की सबसे पुरानी वामपंथी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) (M) जैसे संगठन तब प्रभावशाली रहे और सामाजिक क्रांतियों के लिए जाने गए। 2011 तक, लेफ्ट कमजोर पड़ गया। साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में एक बार फिर लेफ्ट ने साबित किया कि अभी वामदल बिहार में पूरी तरह से अप्रासंगिक नहीं हुए हैं।
साल 1950 से लेकर 1960 तक के दौर को कहा जा सकता है कि यह वामपंथियों का दौर था। जब देश को आजादी मिली तो मजदूर और किसान अपने हक के लिए इकट्ठा होते गए। उत्तर से लेकर दक्षिण तक कम्युनिस्ट विचारधारा लोकप्रिय होने लगी। आलम यह था कि यूपी में भी वामपंथी दलों के नेता चुन लिए जाते थे, जबकि उत्तर प्रदेश की सामाजिक स्थिति, अन्य राज्यों की तुलना में अलग है। यहां कभी लेफ्ट मजबूत स्थिति में नहीं रहा। लेफ्ट आंदोलनों की वजह से ही जाना गया।
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देश की अहम वामपंथी पार्टियां कौन सी हैं?
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) CPI(M)
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (CPI (ML) लिबरेशन)
क्यों पड़ी थी CPI में फूट?
विचारधारा के स्तर पर तीनों दल अलग-अलग हैं। 7 नवंबर 1964 तक भारत की कम्युनिस्ट पार्टी केवल अस्तित्व में रही। इसका एक हिस्सा बना सीपीआई और दूसरा हिस्सा बना कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट)। पार्टी में बिखराव, 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान विचारधारा के मतभेदों की वजह से हुआ। उस समय सोवियत संघ और चीन के बीच भी रिश्तों में दरार आ रही थी।
1953 में स्टालिन की मृत्यु के बाद सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव ने एक ऐसे कम्युनिज्म को अपनाया, जिसमें पूंजीवाद और कम्युनिज्म साथ-साथ चल सकें। चीन के माओत्से तुंग इससे सहमत नहीं थे। वे अधिक कट्टर कम्युनिस्ट नीतियों के पक्षधर थे। यह वैचारिक टकराव भारत की कम्युनिस्ट पार्टी में भी दिखा।
कहा जाता है कि साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय कई भारतीय कम्युनिस्टों को चीन समर्थक होने की वजह से जेल में डाल दिया गया। CPI का एक धड़ा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ खड़ा था। यह दल रूढ़िवादी था। दूसरा धड़ा ज्यादा कट्टर था। चीन के जवाबी हमले का समर्थन करन लगा। देश में सीपीआई के खिलाफ सख्ती बढ़ने पर पार्टी को गुप्त रूप से काम करना पड़ा। कई बैठकों के बाद आखिरकार CPI टूट गई और CPI (M) का जन्म हुआ।
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CPI और CPI (M), CPI (ML) (L) में क्या अंतर है?
- CPI: यह सोवियत संघ की विचारधारा से प्रभावित है। पूंजीवाद और कम्युनिज्म के एक साथ चलने पर आपत्ति नहीं है। यह पार्टी लोकतंत्र की पक्षधर है और मानती है कि अगर बेहतर लोकतंत्र होगा तो मजदूर वर्ग और मजबूत होगा। इसकी नीतियां लोकतांत्रिक और पारदर्शी हैं।
- CPI (M): यह पार्टी चीन की कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) का लक्ष्य भारत में समाजवादी समाज की स्थापना है, जो वर्ग शोषण और सामाजिक उत्पीड़न से मुक्त हो। यह पार्टी पूर्ण स्वतंत्रता, सामाजिक-आर्थिक सुधार, जमींदारी और जाति उत्पीड़न के उन्मूलन के लिए संघर्ष करती है। पार्टी ने तेभागा, तेलंगाना जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया। मजदूरों, किसानों, छात्रों को संगठित किया। यह साम्राज्यवाद, सामंतवाद और एकाधिकार पूंजीवाद के खिलाफ जनवादी क्रांति के लिए एक जन-लोकतांत्रिक मोर्चा बनाने की दिशा में काम करती है। यह पार्टी भी मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों से प्रभावित है लेकिन शांतपूर्ण तरीके से शासन व्यवस्था में बनी रहनी चाहती है।
- CPI (ML) (L): कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन, सीपीआई और सीपीआई (एम) से अलग विचारधारा वाली पार्टी है। मई 1967 के नक्सलबाड़ी विद्रोह के बाद यह पार्टी अस्तित्व में आई। नक्सलबाड़ी आंदोलन ने भारत के सबसे बड़ी उत्पीड़ित वर्गों को लामबंद किया। गरीब, किसान और मजदूर इस पार्टी से बड़ी संख्या में जुड़े। पार्टी का लक्ष्य गरीब किसानों और मजदूरों को राजनीतिक केंद्र में लाने का है। यह पार्टी, वाम दलों से बसे नई पार्टी है। 22 अप्रैल 1969 को लेनिन की जयंती पर इसकी स्थापना हुई। CPI (ML) का एजेंडा मार्क्सवाद-लेनिनवाद को भारतीय परिस्थितियों में लागू करना है। CPI(ML) लिबरेशन ने भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन की क्रांतिकारी विरासत को जिंदा रखा है।
पार्टी संशोधनवाद और अराजकतावादी विचारधाराओं का डटकर विरोध किया। पार्टी सरकारों के निशाने पर भी रही। इसके संस्थापक महासचिव चारु मजूमदार की पुलिसिया दमन में मौत हुई थी। CPI (ML) के वर्ग संघर्ष मॉडल में दलितों, उत्पीड़ित जातियों और महिलाओं की स्थिति को तरजीह दी गई है। लिबरेशन देशभर में मजदूरों, किसानों और अन्य वंचित वर्गों के आंदोलनों का नेतृत्व करती है। संसद और विधानसभाओं में इसके प्रतिनिधि क्रांतिकारी विपक्ष की भूमिका निभाते हैं। यह पार्टी राष्ट्रवाद का विरोध करती है। यह पार्टी सरकारी दमन, कठोर कानूनों, जातिवाद, लैंगिक हिंसा, नस्लवाद, होमोफोबिया और कॉरपोरेट्स के खिलाफ संघर्ष कर रही है।

कैसे लोकप्रिय हुए वाम दल?
तेलंगाना के लिए साल 1946 से लेकर 1951 तक आंदोलन चला। आंदोलन का मकसद हैदराबाद के निजाम के शासन के तहत आने वाले जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का सशस्त्र विद्रोह था। किसानों का शोषण हो रहा था, CPI इसके खिलाफ किसानों को लामबंद कर रही थी। ऐसा ही एक आंदोलन इसी दौरान 1946 से लेकर 1947 के बीच पश्चिम बंगाल में चला। पश्चिम बंगाल में भी किसान, शोषणों से परेशान थे। तेभागा आंदोलन का मकसद किसानों को उनकी उपज का दो-तिहाई हिस्सा दिलाने के लिए था। आंदोलन की मांग थी कि जमींदारों को एक तिहाई हिस्सा मिले और किसानों को दो तिहाई। इन आंदोलनों की वजह से लेफ्ट की तरफ मजदूर वर्ग का रुझान तेजी से बढ़ा। मई 1967 के नक्सलबाड़ी विद्रोह के बाद लेफ्ट की विचारधारा कई राज्यों में फैल गई।
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वामपंथ का स्वर्णिम काल कब से कब तक रहा?
केरल, वामपंथ की सबसे सुरक्षित धरती साल 1957 से रही है। केरल में इसी साल पहली बार वामपंथी सरकार बनी। यह विश्व की पहली लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार थी। साल 1960 से 1980 तक कम्यनिस्ट विचारधारा खूब लोकप्रिय हुई। पश्चिम बंगाल और केरल में वामपंथी दल मजबूत होते गे। साल 1967 तक पश्चिम बंगाल में भी पहली बार संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, जिसका नेतृ्त्व CPI कर रही थी।
लेफ्ट आलोचना के केंद्र में अपने हिंसक रुख की वजह से रही। साल 1967 का नक्सलबाड़ी आंदोलन, माओवादी विचारधारा को भारत में लोकप्रिय बना गया। यह मुख्य धारा का वामपंथ नहीं था लेकिन कई नेता इसके प्रभाव में थे। विश्वविद्यालयों से लेकर सामाजिक संगठनों तक इस विचारधारा से प्रभावित लोग मुखर होकर बोलने लगे थे। साल 1980 से 2000 तक के दशक तक, पश्चिम बंगाल में CPI (M) के नेतृत्व में वाम मोर्चा की सरकार रही। वाम दल भूमि सुधार योजनाओं, मजदूर अधिकारों और सामाजिक कल्याण योजनाओं को लेकर सत्ता में रहे।
साल 2000 तक, दुनिया वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर में आ गई थी। पूंजीवाद देश की जरूरत थी। 2011 में पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा हार गया। 2004 से 2008 के बीच केंद्र में यूपीए सरकार के साथ वामपंथ ने अपनी राहें अलग कीं। केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में ही वामपंथी दल, पूरी तरह से सत्ता में रहे।
किस राज्य में अभी दमखम दिखा रहे हैं वाम दल?
- केरल: केरल में वामपंथी दल, वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) गठबंधन का हिस्सा हैं। साल 2021 में हुए चुनाव में लेफ्ट को जीत मिली थी। CPI (M) के 62 विधायक हैं, CPI के 17 विधायक हैं। केरल की विधानसभा में कुल 140 सीटें हैं। देश में यही इकलौता राज्य है, जहां कम्युनिस्ट अपने दम पर सत्ता में हैं।
- बिहार: केरल के बाद बिहार में वामपंथी दल मजबूत स्थिति में हैं। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट के दलों ने कमाल किया। बिहार की सबसे बड़ी लेफ्ट पार्टी CPI(ML) है, जिसके 12 विधायक हैं। CPI और CPI(M) के 2-2 विधायक हैं।
- झारखंड: झारखंड में साल 2024 में विधानसभा चुनाव हुए। CPI (ML) ने दो सीटें हासिल की थीं। यह पार्टी, इंडिया गठबंधन का हिस्सा है।
- त्रिपुरा: त्रिपुरा में CPI (M) के 11 विधायक हैं। 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी एक बार फिर सत्ता से बाहर रही।
- तमिलनाडु: तमिलनाडु में साल 2024 में 39 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुए। दो पार्टियों पर CPI और CPI (M) को दो-दो सीटें मिलीं।
- महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में CPI (M) का एक विधायक है।
सीपीआई, सीपीआई (एमएल) और सीपीआई (एम) के नेता कौन हैं?
- CPI (ML): दीपंकर भट्टाचार्य (महासचिव)
- CPI (M): एमए बेबी (महासचिव) पिनराई विजयन (मुख्यमंत्री, केरल)
- CPI: डी राजा (महासचिव)
बिहार से क्या उम्मीदें हैं?
बिहार में नवंबर तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। CPI (ML) बिहार की सबसे बड़ी लेफ्ट पार्टी है। पार्टी ने 12 सीटें साल 2020 के विधानसभा चुनावों में हासिल की थीं। लेफ्ट की पार्टियां इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं। CPI (ML) बिहार में 25 से 35 सीटें मांग रही है। बिहार में तीनों वामदल मिलाकर 60 सीटें चाहते हैं। बिहार के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट की सफलता दर 60 फीसदी से ज्यादा रही। पूरे लेफ्ट खेमे को सिर्फ 29 सीटें मिली थीं, फिर भी पार्टी ने 16 सीटों पर कामयाबी हासिल की। अब एक बार फिर इंडिया गठबंधन के साथ लेफ्ट की पार्टियां बिहार में उतरने के लिए तैयार हैं।
पार्टी का संगठनात्मक ढांचा क्या है?
कम्युनिस्ट पार्टी का एजेंडा क्या होगा, यह तय करने की जिम्मेदारी पोलित ब्यूरो की होती है। एक महासचिव होते हैं, दूसरे सदस्य होते हैं। पार्टी के हर फैसले पर इसी पोलित ब्यूरो का नियंत्रण होता है। पोलित ब्यूरो में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व शामिल होता है। पार्टी और सरकार के हर फैसलों पर मोहर पोलित ब्यूरो ही लगाता है।
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