मार्च 2020 में जब देशभर में कोविड फैल रहा था, तो इसके लिए दिल्ली के मरकज निजामुद्दीन के प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी पर महामारी फैलाने का आरोप लगा था। इसे लेकर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मौलाना कांधलवी और कई लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की थी। आरोप था कि मौलाना कंधालवी ने लोगों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन न करने के लिए भड़काया और महामारी फैलाई। हालांकि, FIR दर्ज होने के 5 साल बाद जांच में पता चला है कि इसमें कुछ भी 'आपत्तिजनक' नहीं था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी ने अपने सीनियर अधिकारियों को बताया है कि मौलाना साद के लैपटॉप से बरामद उनके भाषणों में 'कुछ भी आपत्तिजनक' नहीं मिला।
दरअसल, मार्च 2020 में दिल्ली में तब्लीगी जमात ने एक आयोजन किया था। इससे पहले 21 मार्च 2020 को मौलाना साद का एक ऑडियो वॉट्सऐप आया था। इसमें कथित तौर पर मौलाना साद अपने अनुयायियों से लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने को कह रहे थे। इसे लेकर दिल्ली पुलिस ने मौलाना साद और अन्य के खिलाफ FIR दर्ज की थी। इसमें उन पर गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया था।
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लेकिन जांच में कुछ नहीं निकला
इंडियन एक्सप्रेस को क्राइम ब्रांच के एक सीनियर अफसर ने बताया, 'डेटा निकालने के लिए एक लैपटॉप और कुछ इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस फोरेंसिक लैब (FSL) में जमा किए गए थे। अभी भी उनकी कुछ जांच बाकी है।'
उन्होंने बताया कि 'मौलाना साद के भाषण लैपटॉप थे, जिनका जांच के दौरान पहले ही एनालिसिस किया जा चुका था और उनमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला।'
अखबार ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह भी बताया है कि अधिकारी ने दिल्ली पुलिस हेडक्वार्टर में सीनियर अफसरों को यह भी बताया है कि साद अभी तक जांच में शामिल नहीं हुआ है।
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तब्लीगी जमात के सदस्यों पर FIR रद्द
पिछले महीने दिल्ली हाई कोर्ट ने तब्लीगी जमात के सदस्यों पर दर्ज FIR को रद्द कर दिया था। मार्च 2020 में कोविड फैलाने की आरोप में तब्लीगी जमात के 70 सदस्यों के खिलाफ 16 FIR दर्ज की गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि महामारी के शुरुआती दिनों में सिर्फ मरकज में रहने से सरकारी आदेश का उल्लंघन नहीं होता।
तब्लीगी जमात पर 13 से 15 मार्च 2020 को निजामुद्दीन मरकज में अंतर्राष्ट्रीय समागम आयोजित कर महामारी फैलाने का आरोप लगा था।
इस मामले में 36 देशों के 952 नागरिकों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी। लगभग 44 आरोपियों ने ही मुकदमे का सामना करने का रास्ता चुना था। जबकि 908 ने अपने ऊपर लगे आरोपों को कबूल कर लिया था और 4 हजार से 10 हजार तक का जुर्माना भर दिया था।