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हमला हुआ, चोट लगी, फिर चुनाव जीतकर बने सांसद; कौन थे मधु लिमए?

मधु लिमए को मुंगेर के निधन के बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने टिकट दिया गया था। चुनाव प्रचार के दौरान उन पर हमला हुआ, लेकिन वह बाद में चुनाव जीत गए।

Madhu Limaye (representational image)। Photo Credit: AI Generated

मधु लिमये (प्रतीकात्मक तस्वीर) । Photo Credit: AI Generated

संजय सिंह, पटना: बात 1960 के दशक की है। मुंगेर के कांग्रेसी सांसद बनारसी प्रसाद सिंह का निधन हो गया था। वे हवेली खड़गपुर अनुमंडल के मिल्की गांव के निवासी थे और उनकी लोकप्रियता पूरे इलाके में थी। अक्सर क्षेत्र भ्रमण के लिए वे घोड़ा गाड़ी की सवारी करते थे। उनके निधन के बाद चुनाव आयोग ने रिक्त पद पर चुनाव कराने की घोषणा कर दी।

 

संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने अपना उम्मीदवार, तबके जुझारू नेता मधुलिमिए को घोषित किया। मधुलिमिए के लिए मुंगेर की राजनीति नई थी। उस समय कांग्रेस का क्षेत्र में बोलबाला था। कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार, जमुई निवासी पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह को मैदान में उतारा। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को जीत दिलाने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता पूरे इलाके में प्रचार कर रहे थे।


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हुआ था हमला

जिस दिन मधुलिमिए पर हमला हुआ, उसी दिन टाउन हॉल मुंगेर में बाबू जगजीवन राम की सभा चल रही थी। उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे। मधुलिमिए का प्रचार डॉ. राममनोहर लोहिया गांव-गांव जाकर कर रहे थे। दोनों प्रत्याशियों के बीच मुकाबला काफी कांटे का था।

 

मुंगेर के युवा नेता रामदेव सिंह यादव मधुलिमिए के साथ थे। दोनों चुनाव प्रचार के लिए सदर प्रखंड के तौफीर दियारा इलाके में गए। चुनाव प्रचार के दौरान कुछ ग्रामीण आपस में उलझ गए और देखते-देखते लाठी-रॉडबाजी शुरू हो गई। मारपीट के दौरान दोनों नेताओं को चोटें आईं। यह खबर पूरे प्रदेश में आग की तरह फैल गई। मधुलिमिए पर हमले का असर चुनाव पर पड़ा। मतगणना के बाद उन्हें विजयी घोषित किया गया और कांग्रेस प्रत्याशी हार गया।

 

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रामदेव बने थे मंत्री

मधुलिमिए पर हमले में घायल हुए रामदेव सिंह यादव की राजनीतिक हैसियत भी दिन-ब-दिन बढ़ती गई। विधानसभा चुनाव में वे मुंगेर विधानसभा से विधायक चुने गए और बाद में लालू यादव के मंत्रिमंडल में उन्हें सहकारिता मंत्री बनाया गया। अन्य नेताओं की तुलना में उनकी छवि अलग थी। उनमें अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने की हिम्मत थी। चुनावी मौसम में हुए इस हमले की चर्चा बरबस ही हो जाती थी।

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