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JMM पर भरोसा, BJP पर संदेह, यूं ही नहीं पलटी झारखंड की बाजी

झारखंड विधान सभा चुनावों में बीजेपी की हार और झारखंड मुक्ति मोर्चा की जीत की वजहें क्या रही हैं, आइए विस्तार से समझते हैं।

Hemant Soren after winning Jharkhand Assembly Elections

झारखंड में प्रचंड बहुमत के बाद अपने परिवार और सहयोगी के साथ हेमंत सोरेन। (तस्वीर- x.com/jmm)

झारखंड विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया था लेकिन कामयाबी वैसी नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हों या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या गृहमंत्री अमित शाह, हर नेता ने यहां बेहद आक्रामक कैंपेनिंग की। बार-बार सार्वजनिक मंचों से दिग्गज नेताओं ने कहा कि झारखंड में घुसपैठिए आपकी जमीन छीन रहे हैं, बेटियों को लव जिहाद में फंसाकर झारखंड की आदिवासी संस्कृति को खतरे में डाल रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इस नारेबाजी का कोई असर नहीं हुआ।

जिस कोल्हान प्रमंडल में बीजेपी ने सबसे ज्यादा घुसपैठ, इस्लामिक तुष्टीकरण और लव जिहाद का मुद्दा उठाया, वहीं बीजेपी फिसड्डी साबित हुई है। संथाल परगना के 6 जिलों की 18 विधानसभाओं में सिर्फ 1 सीट ही बीजेपी जीत सकी। वह भी सिर्फ चंपाई सोरेन सोरेन ही बीजेपी की ओर से सरायकेला सीट जीत सके। झारखंड राज्य का गठन साल 2000 में हुआ था, तब से लेकर अब तक, यह पहली बार है, जब वहां सत्तारूढ़ सरकार की वापसी हुई हो, वह भी प्रचंड बहुमत से।

झारखंड मुक्ति मोर्चा, आदिवासी हितों के लिए बनाई गई पार्टी है। हेमंत सोरेन जनता को यह बताने में कामयाब रहे। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को यह कहकर भुनाया कि लोग नहीं चाहते कि राज्य का मुख्यमंत्री कोई आदिवासी हो, यह आदिवासी हितों पर प्रहार है। बीजेपी के आदिवासी प्रेम पर हेमंत सोरेन का आदिवासी होना बहुत भारी पड़ा। हेमंत सोरेन के पिता शीबू सोरेन, दिशोम गुरु के नाम से प्रसिद्ध हैं। झारखंड में लोग उन्हें भावनात्मक तौर पर बहुत सम्मान से देखते हैं। आदिवासी उन्हें बेहद पसंद करते हैं। यह चुनाव, भावनात्मक मुद्दे पर भी लड़ा गया, जिससे पार पाने में बीजेपी पीछे छूट गई।

आइए उन वजहों के बारे में जानते हैं, जिनके चलते बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर के बाद भी सत्ता गंवा दी। 

आदिवासी नहीं कर सके BJP की बातों पर भरोसा 
झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए 28 सीटें रिजर्व हैं। इन सीटों में 27 सीटों पर इंडिया ब्लॉक की जीत हुई है। झारखंड एक आदिवासी बाहुल राज्य है, जहां की 26 फीसदी आबादी आदिवासी है। साल 2019 के चुनाव में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इन सीटों में से 26 सीटें जीत ली थी, इस बार एक सीट और जीत ली है।

बीजेपी ने इसी क्षेत्र में मुद्दा उठाया कि आदिवासी बहनों को लव जिहाद में फंसाकर यहां की डेमोग्राफी को ही बदल दिया जा रहा है, लोगों ने इसे खारिज कर दिया। संथाल परगना में 6 जिले आते हैं। सभी जिलों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। बीजेपी के घुसपैठ सिद्धांत वाला मुद्दा बुरी तरह से फेल हो गया। 

बीजेपी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे गांवों में मस्जिदों की भरमार है, संथाल बाहुल जनजाति के इस इलाके में आदिवासियों के पूजा स्थल खत्म हो गए हैं, मदरसे नजर आ रहे हैं। इसे मुद्दा मानने से ही इनकार कर दिया। लोगों ने संथाल टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन की बात ही अनसुनी कर दी। चंपाई अपने बेटे रामदास सोरेन को घाटशिला की सीट तक नहीं जिता सके। 

जीत के बाद पिता से मिलते हेमंत सोरेन। 



चंपाई सोरेन कोल्हान प्रमंडल में बुरी तरह फेल साबित हुए। बहरागोडा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर पूर्व और पश्चिम, ईचागढ़, खरसांवा, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधर पुर में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी। 


मंइयां योजना से पेंशन योजना तक, कैसे बदला झारखंड का गेम

झारखंड में सोरेन सरकार ने बाजी पलट दी है। इस योजना से लाभान्वित होने वाले लोगों को हेमंत सोरेन पसंद आए। 21 से 50 साल की महिलाओं को सरकार ने 1000 रुपये महीना दिया, जिससे करीब 57 लाख महिलाओं को लाभ मिला। लोग बीजेपी के गोगो दीदी योजना पर भरोसा नहीं कर पाए। 2100 रुपये देने का वादा किया था। इस योजना में लोग हेमंत सोरेन पर ज्यादा भरोसा कर गए।

हेमंत सोरेन सरकार ने 200 यूनिट बिजली फ्री का वादा किया। 40 लाख घरों का बिजली माफ हुआ, किसानों की कर्जमाफी हुई। 1.7 लाख किसानों का 400 करोड़ रुपये का लोन माफ किया गया। हेमंत सोरेन की एक और योजना ने जनता पर असर किया। अबुआ आवास योजना के तहत उन्होंने गरीबों को घर बनाने के लिए 5 किस्तो में 2 लाख रुपये वाली योजना लेकर आए। उन्होने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की। इन योजनाओं ने जनता के चुनावी मिजाज को बदल दिया। 

कल्पना सोरेन ने पलटी बाजी
एक तरफ, बीजेपी के पास झारखंड में कोई बड़ा स्थानीय चेहरा नहीं दिखा। न चंपाई सोरेन सीएम फेस थे, न ही बाबूलाल मरांडी। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा ने नया स्टार तैयार कर दिया। अब राज्य की सियासी विरासत सोरेन दंपति के हाथों में है। एक तरफ हेमंत सोरेन हैं, वहीं दूसरी तरफ कल्पना सोरेन हैं। बीजेपी ने जहां अपने चुनाव का कैंपेन बॉय ही हिमंता को बना दिया था, कल्पना और हेमंत सोरेन अपने देसी अंदाज में प्रचार करते नजर आए। 

हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन एक चुनावी जनसभा में। 

बीजेपी को असली दर्द जयराम महतो ने दिया
बीजेपी को चुनाव में सबसे ज्यादा दर्द जयराम महतो ने दिया। वे कुड़मी-महतो समाज के नेता हैं लेकिन तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। वे युवा हैं। 70 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े। आलम ये रहा कि जीत-हार का जितना अंतर था, उससे ज्यादा सीटें जयराम महतो की झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा को सीटों मिलीं। बीजेपी का ओबीसी वोट बिखरा, झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासी और अल्पसंख्यकों वोटरों को जोड़ने में कामयाब रही।

जयराम महतो का चुनावी कैंपेन बेहद चर्चा में रहे हैं। उन्होंने जीत से अपनी पार्टी का खाता खोला है।

क्या है इंडिया ब्लॉक की सीटों का आंकड़ा?
झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 56 सीटें, इंडिया गठबंधन के पास हैं। इंडिया गठबंधन में तीन मुख्य दल हैं, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल। तीनों दलों की संयुक्त सीटों ने बहुमत का आकंड़ा पार कर लिया है। झारखंड में सरकार बनाने के लिए सिर्फ 41 सीटों की ही जरूरत है। JMM को इस चुनाव में 34 सीटें मिलीं, कांग्रेस के पास 16 सीटें हैं और राष्ट्रीय जनता दल के पास 4 सीटें हैं। लेफ्ट के पास 2 सीटें हैं। अन्य के खाते में भी कुछ सीटें गई हैं। ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के खाते में 1 सीट गई है। अन्य में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा ने भी एक सीट हासिल ही है।

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